UP Board Exam 2021 Class 12th Hindi
Class 12th Hindi SutPutra Natak Pdf Free Download In Hindi
नाटक
नाटक
लेखक :डॉ0 गंगासहाय 'प्रेमी'
नायक : कर्ण
जनपद: प्रयागराज
प्रश्न 1. सूतपुत्र की सार्थकता पर विचार कीजिए।
उत्तर. नायक का शीर्षक सूत पुत्र उसके कथानक और उद्देश्य के अनुसार सार्थक है
परन्तु नाटक में नाटककार ने सूत पुत्र कर्ण की जीवन को उभारा है सूत परिवार में
पालन होने से उसे अपमान सहना पड़ता है संपूर्ण कथा कर्ण पर ही आधारित है । अतः
नाटककार कर्ण के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को त्यागता है ।
नाटककार को उसे पूरी सफलता मिली है
प्रश्न 1. सूत पुत्र के नायक कर्ण का चरित्र चित्रण कीजिए ।
उत्तर. कर्ण सूत पुत्र का नाटक पात्र है नाटक की संगत सारी घटनाओं का केंद्र बिंदु कर्ण ही है। उसी के नाम पर नाटक का नामकरण भी हुआ है संक्षेप में करण की निम्नलिखित विशेषताएं हैं।
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सुंदर आकर्षक और प्रभावशाली व्यक्तित्व: कर्ण 38 से 35 वर्षीय हष्ट पुष्ट सुंदर युवक है। रंग उज्जवल,शरीर लंबा चेहरा , आंखें छोटी ,बाल लम्बे हैं। चेहरा ऐसा दबंग है कि द्रौपदी के स्वयंवर में जहां दर्शक सभी राजाओं की हंसी उड़ाते हैं कर्ण खड़े होने पर किसी का साहस नहीं होता है।
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गुरु के प्रति अटूट आस्था व श्रद्धा: कर्ण को अपने गुरु परशुराम जी के प्रति अटूट आस्था और श्रद्धा है। परशुराम जी करण की जांघ पर सोए हुए हैं। एक विषैला कीड़ा कर्ण की जांघ का ममांस उतर कर प्रविष्ट हो जाता है। रक्त की धार से परशुराम का उत्तरीय भीग जाता है फिर भी कर्ण परशुराम जी को इसलिए नहीं लगाता कि उनकी में नींद उचट जाएगी । बाद में परशुराम जी को कर्ण की दृढ़ता पर क्षत्रिय होने का विश्वास हो जाता है ।तब वे कर्ण को श्राप देते है और बाहर जाने का आदेश देते हैं।
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वीर पराक्रमी सौभाग्यशाली प्रभावशाली: कर्ण युद्ध वीर, दानवीर होने के साथ-साथ धर्मवीर ही है मरते समय भी वह दान देकर अपने धर्म की रक्षा करता है वह वीर पराक्रमी है शत्रु भी उसका लोहा मानते हैं । उसके मरने के बाद श्री कृष्ण कहते हैं कि आज एक वचन का सच्चा और दान का सदा के प्रति संसार से सदा के लिए उठ गया ।
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निर्भीक निश्चित और आत्मनिर्भर: कर्ण अत्यंत ही से निर्भीक है द्रुपद नरेश की भरी सभा में परशुराम की निंदा सुनकर निर्भीकता को बोल उठता है - आदरणीय द्रुपद नरेश आप अपनी वाणी पर संयम करिए मेरे गुरु के निंदा में अब और एक भी शब्द कहा तो स्वयंवर मंडल युद्ध स्थल में बदल जाएगा। कर्ण कवच और कुंडल इंद्र को देकर कहता है - कर्ण अपनी रक्षा में स्वयं समर्थ है।
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अजेय साहसी और निर्भीक: बापू दुबले पतले शरीर में अजेय साहस को रखते हैं उनकी निर्भीरकता के आगे पशुता को झुकना पड़ता है मानवीय एकता और समत्व की भावना ही उनके अहिंसा के सिद्धांत की आधारशिला है।
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निष्काम कर्मयोगी: कर्ण निष्काम कर्मयोगी है। वह सफलता और सफलता के सामान्य परिभाषा को नहीं जानता। वह द्रौपदी के स्वयंवर के समय वह सब से कहता है। मुझे राज्य का स्वामी बनने की अभिलाषा नहीं है लेकिन मैं कृष्णा (द्रौपदी) से विवाह करने में विशेष रूचि नहीं रखता हूं ।
प्रश्न 2. सूत पुत्र नाटक का उद्देश्य क्या है।
उत्तर. नाट्य कला की दृष्टि की समीक्षा हम इस प्रकार कर सकते हैं -
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कथानक - यह महाभारत से संबंधित ऐतिहासिक नाटक है इसमें दानवीर कर्ण की जीवन की घटनाओं का वर्णन है नाटक 4 अंकों में है। कथा का आरंभ करो परशुराम संवाद से होता है। केंद्र द्वारा कवच कुंडल मांग लेने की घटना नाटक के उत्कर्ष को प्रस्तुत करती है। कुंती कर्ण संवाद के समय नाटक तार पर होता है तथा विभिन्न स्थानों में कर्ण के संपूर्ण जीवन काल की घटनाओं का वर्णन करता है पात्र एवं चरित्र होता है लेखक ने सूत पुत्र के नाटक के पात्रों को बखूबी रखा है।
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नाटक के पात्र- लेखक का मत है कि महाभारत की घटनाएं ऐतिहासिक हैं नाटक के मुख्य अर्जुन श्री कृष्ण करण परसराम दुर्योधन इत्यादि गौण पात्रों में भीम कुंती सूर्य इंद्र इत्यादि। गौणति गौण श्रेणी में अन्य पात्र भी हैं जिनका मात्र उल्लेख ही है।
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संवाद योजना- नाटक के संवाद उनके पात्रों के अनुकूल है स्वच्छता एवं भव्य अंजना संवादों के अन्य गुण हैं नाटक में गीतों का उपयोग हुआ है और विराम संवाद योजना के दृष्टि से नाटक श्रेष्ठ है।
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भाषा शैली- नाटक की भाषा खड़ी बोली संस्कृत के शब्दों का अधिक प्रयोग उर्दू फारसी के शब्द है। चक्कर में पड़ना अंगारे बरसना इत्यादि लोग तो लोकोक्ति का प्रयोग किया है। शैली की दृष्टि से संवाद आत्मक एवं संभाषण प्रधान है। स्वगत शैली काव्य शैली तथा ओज गुण शैली की प्रधानता है।
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उद्देश्य- इस नाटक का उद्देश्य आधुनिक समाज जाति एवं धर्म की समस्या विवाह उत्पन्न पुत्र की इत्यादि का उद्घाटन करके इन समस्याओं के उन्मूलन का मार्ग प्रशस्त करना है। कर्ण के दानवीर, युद्धवीर, गुरु भक्त तथा आदर्श मनोचित्र उदास गुणों को प्रस्तुत करना भी नाटक का उद्देश्य है।
प्रश्न 3. सूत पुत्र के आधार पर परशुराम के चरित्र गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर. परशुराम कर्ण के गुरु हैं जो रामचंद्र से पराजित होकर उत्तराखंड में आश्रम बनाकर रह रहे हैं। वह 21 बार क्षत्रियों का संघार कर चुके हैं ब्राह्मण को छोड़कर भी किसी अन्य जाति वालों को शस्त्र विद्या नहीं देते हैं। वह भीष्म पिता के भी गुरुर चुके हैं। उनके पिता जमुदम्बिन माता रेणुका( क्षत्रिय कन्या) है अवस्था लगभग 200 वर्ष है उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
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शिष्य के प्रति वात्सल्य भाव: उग्र स्वभाव के होते हुए भी विशेष के प्रति वात्सल्य भाव हैं। विषैले कीड़े के आघात से कर्ण की जंघा रक्त स्राव से विचलित हो उठते हैं कर्ण के मना करने पर कहते हैं - शिष्य वह पुत्र के समान होता है । क्या माता पिता पुत्र की सेवा नहीं करते ।
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नारी के प्रति सम्मान भाव: परशुराम के मन में नारी के प्रति सम्मान की भावना है । वह नारी की उपेक्षा कदापि सहन नहीं कर सकते हैं। भीष्म द्वारा अंबा की अवहेलना करने पर वे अत्यंत ही रुष्ट हो जाते हैं और अंबा के आत्मदाह करने पर वे भीष्म से आजीवन दुखित हो जाते हैं।
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अत्यंत ही सजग और तार्किक व्यक्ति: परशुराम अत्यंत ही सजग एवं तार्किक हैं। वे किसी तथ्य को तर्क की कसौटी पर कसे बिना तर्क स्वीकार करने पर तैयार नहीं हुए। कर्ण के व्यवहार से ही उनके मन में शंका उत्पन्न की यह ब्राह्मण नहीं है। इसी आधार पर वे करण के ब्राह्मणत्व पर शंका करने लगते हैं।
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जाति और वर्ण व्यवस्था के प्रति आक्रोश- यद्यपि परशुराम ब्राह्मणों के पक्षधर और क्षत्रियों के शत्रु हैं फिर भी उनके मन में जाति और वर्ण व्यवस्था के घोर छोर हैं। एकलव्य और कर्ण जैसे अगणित प्रतिभाशाली व्यक्तित्व युवक असंवर्ण नामपत लगा होने से विपत्ति झेलने को विवश किए गए हैं।
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अनुशासन प्रियता और कर्तव्यनिष्ठता- परशुराम कर्ण के प्रति मोह रखते हुए भी अनुशासन भंग होने के भय से दंड देते हैं वे कर्तव्य के प्रति अत्यंत ही जागरूक हैं वे कर्ण से कहते हैं - स्वाभिमानी को अपराध का दंड सहने के लिए सहस्त्र रहना चाहिए। दंड को बिना भोगे अशुद्धि संभव नहीं है। यदि गुरु करुण से विगलित होकर अपराधी को दंड देने में सोच विचार करेगा तो अनुशासन समाप्त हो जाएगा।
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